Navratri or Navratra: देश के अलग-अलग हिस्सों में नवरात्रि का पहला व्रत 15 अक्टूबर को रखा जाएगा. नवरात्र शब्द से 9 विशेष रात्रियों का बोध होता है. इस दौरान शक्ति के 9 रूपों की उपासना की जाती है. ‘रात्रि’ शब्द सिद्धि का प्रतीक है. भारत के प्राचीन ऋषि-मुनियों ने रात्रि को दिन से ज्यादा महत्व दिया है. इसीलिए दीपावली, होलिका दहन, शिवरात्रि और नवरात्र को रात में ही मनाने की परंपरा है. अगर रात्रि का विशेष रहस्य ना होता तो ऐसे उत्सवों को ‘रात्रि’ न कहकर ‘दिन’ ही कहा जाता. अब तक इस पैरा में कहीं ‘नवरात्रि’ तो कहीं ‘नवरात्र’ लिखा गया है. ऐसे में आपके मन में सवाल उठना लाजिमी है कि दोनों में सही और शुद्ध शब्द कौन-सा है?
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देश-विदेश में रहने वाले सनातनी नवरात्र को साल में दो बार मनाते हैं. विक्रम संवत के पहले दिन या चैत्र मास शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से 9 दिन यानी नवमी तक नवरात्रि मनाई जाती है. वहीं, ठीक 6 महीने बाद आश्विन मास शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से महानवमी यानी विजयादशमी के एक दिन पहले तक नवरात्र मनाए जाते हैं. सिद्धि और साधना के नजरिये से शारदीय नवरात्रों को ज्यादा महत्वपूर्ण माना गया है. शारदीय नवरात्रों में लोग आध्यात्मिक और मानसिक शक्ति इकट्ठी करने के लिए कई प्रकार के व्रत, संयम, नियम, यज्ञ, भजन, पूजन, योग-साधना करते हैं.
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क्या है रात्रि का आध्यात्मिक व वैज्ञानिक महत्व
नवरात्रों में शक्ति के 51 पीठों पर भक्त देवी की उपासना के लिए जुटते हैं. बड़ी संख्या में उपासक अपने घर पर ही शक्ति का आह्वान करते हैं. आजकल ज्यादातर भक्त शक्ति पूजा रात के बजाय दिन में ही संपन्न करा देते हैं. वहीं, मनीषियों ने नवरात्रि के महत्व को काफी बारीकी से वैज्ञानिक परिप्रेक्ष्य में समझने और समझाने की कोशिश की है. रात में प्रकृति के कई अवरोध खत्म हो जाते हैं. दिन में सूर्य की किरणें आवाज की तरंगों और रेडियो तरंगों को आगे बढ़ने से रोक देती हैं. वैज्ञानिक सिद्धांत यह है कि सूर्य की किरणें जिस तरह से दिन में रेडियो तरंगों को रोकती हैं, उसी तरह मंत्र जाप की विचार तरंगों में भी दिन में रुकावट आती है. लिहाजा, ऋषि-मुनियों ने रात का महत्व ज्यादा बताया है.
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नवरात्र या नवरात्रि में सही और शुद्ध क्या है?
व्याकरण के अनुसार ‘नवरात्रि’ गलत है. नौ रात्रियों का समूह होने के कारण इसमें द्विगु समास होता है. द्विगु समास में आने के कारण पुल्लिंग शब्द ‘नवरात्र’ ही शुद्ध है. बता दें कि जिस समास में पूर्वपद संख्यावाचक हो उसे द्विगु समास कहा जाता है. नवरात्र शब्द का समास विग्रह नव रातों का समाहार या समूह है. ऋतुओं के परिवर्तन काल में अक्सर शारीरिक बीमारियां बढ़ती हैं. ऐसे समय स्वस्थ रहने के लिए शरीर को शुद्ध रखने और स्वस्थ रखने के लिए की जाने वाली प्रक्रिया का नाम ‘नवरात्र’ है. दिल्ली की संस्कृत और हिंदी अकादमी के पूर्व सचिव डॉ. जीतराम भट्ट के मुताबिक, अगर नव और रात्रि को अलग-अलग लिखेंगे तो ये नव रात्रि और एकसाथ लिखने पर द्विगु समास होने के कारण नवरात्र ही सही व शुद्ध शब्द है.
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नवरात्रि ही क्यों, नवदिन क्यों नहीं होते हैं?
नौ शक्तियों से युक्त होने के कारण इसे नवरात्रि कहा गया है. अमावस्या की रात से अष्टमी तक या प्रतिपदा से नवमी की दोपहर तक व्रत-नियम चलने से नौ रात यानी ‘नवरात्र’ नाम सही है. इसमें रात गिनते हैं. इसलिए इसे नवरात्र यानी नौ रातों का समूह कहा जाता है. इस दौरान सात्विक आहार के व्रत का पालन करने से शरीर की शुद्धि, साफ-सुथरे शरीर में शुद्ध बुद्धि, उत्तम विचारों से ही उत्तम कर्म, कर्मों से सच्चरित्रता और मन शुद्ध होता है. ज्यादातर लोगों को साल में दो बार पड़ने वाले चैत्र और शारदीय नवरात्रों के बारे में ही जानकारी होती है. लेकिन, क्या नवरात्र साल में दो ही बार पड़ते हैं?
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साल में कितने नवरात्र, क्या होता है अंतर?
नवरात्र साल में केवल दो बार नहीं, बल्कि चार बार आते हैं. पहले नवरात्र चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से दशमी तक, दूसरे आषाढ़ शुक्ल प्रतिपदा से दशमी तक, तीसरे आश्विन शुक्ल प्रतिपदा से विजयादशमी तक और चौथे नवरात्र माघ शुक्ल प्रतिपदा से दशमी तक आते हैं. इन चारों में चैत्र में पड़ने वाले वासंतिक नवरात्र और आश्विन में आने वाले शारदीय नवरात्र को विशेष माना जाता है. बाकी दो नवरात्र शक्ति पीठों में मनाए जाते हैं. वासंतिक नवरात्र को शयनाख्य और शारदीय नवरात्र को बोधनाख्य कहा जाता है. वासंतिक नवरात्र में शक्ति के साथ भगवान विष्णु की पूजा भी होती है. शारदीय नवरात्र में शक्ति पूजा का विशेष महत्व है.
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क्यों मनाए जाते हैं नवरात्र, क्या हैं कथाएं?
पौराणिक कथा के मुताबिक, नवरात्र में मां दुर्गा ने महिषासुर नाम के राक्षस का वध करके देवताओं को उसके कष्टों से मुक्त किया था. दरअसल, महिषासुर ने भगवान शिव की आराधना करके कई शक्तियां हासिल कर ली थीं. इसके बाद ब्रह्मा, विष्णु और खुद महेश भी उसे हराने में असमर्थ हो गए थे. महिषासुर के आंतक से सभी देवता भयभीत थे. तब सभी देवताओं ने अपनी-अपनी शक्तियों को मिलाकर देवी दुर्गा को अवतरित किया. कई शक्तियों के तेज से प्रकट हुईं देवी दुर्गा ने महिषासुर का वध किया. रामायण के एक प्रसंग के अनुसार, श्री राम, लक्ष्मण, हनुमान और वानर सेना ने आश्चिन शुक्ल प्रतिपदा से नवमी तक शक्ति की उपासना कर दशमी तिथि को लंका पर आक्रमण किया और रावण पर विजय प्राप्त की.